बाबा खाटू श्याम जी का सीधा संबंध महाभारत काल से है और महाभारत के पांडव पुत्र भीम के पोते हैं बाबा खाटू श्याम जी और महाभारत काल के दौरान इनका नाम “बर्बरीक” था और इनके पिता का नाम “घटोत्कच” था
और यह भगवान श्री कृष्ण के अनन्य भक्त भी थे और बर्बरीक के पराक्रम और बाहुबल से उस समय के सभी लोग परिचित थे जो पूरे महाभारत को एक दिन में ही समाप्त करने की असीमित क्षमता रखते थे
तो एक दिन महाभारत शुरू होने से पहले भगवान श्री कृष्ण ने बर्बरीक से पूछा कि तुम किस तरफ से युद्ध लड़ोगे तब बर्बरीक का उत्तर यह था कि जो युद्ध में कमजोर पड़ेगा हम उसकी तरफ से युद्ध लड़ेंगे।
यह सुनने के बाद भगवान श्री कृष्ण के मन में यह भावना उत्पन्न हुआ कि अगर यह पांडवों की तरफ से लड़ेगा तो कौरव को पूरी तरह से नष्ट कर देगा लेकिन अगर कौरव युद्ध में कमजोर पड़ गए तो बर्बरीक कौरव की तरफ से युद्ध लड़कर के पांडव को भी समाप्त कर देगा
और श्री कृष्ण भगवान ने पांडव को महाभारत का युद्ध जीतने का संकल्प कर चुके थे और भगवान श्री कृष्ण को युद्ध का परिणाम भी पहले से ही पता था
तो एक दिन भगवान श्री कृष्ण ने बर्बरीक से अपना अनन्य भक्त होने का प्रमाण मांगा और बर्बरीक से शीश काटने को कहा इतना सुनते ही बर्बरीक ने अपनी तलवार उठाई और अपने शीश को काट के भगवान श्री कृष्ण को दे दिया
लेकिन शीश देते वक्त बर्बरीक में श्री कृष्ण भगवान से यह अनुरोध किये कि वह पूरा महाभारत का युद्ध देखना चाहते हैं तब इस पर भगवान श्री कृष्ण ने बर्बरीक के शीश को यूथ स्थल से कुछ दूरी पर स्थित एक पहाड़ी रखवा दिया जहां से बर्बरीक में पूरा महाभारत का युद्ध समाप्त होने तक देखा
और महाभारत समाप्त हो जाने के बाद पांडव के बीच में आपसी मतभेद हो गया की महाभारत युद्ध जीतने का श्रेय किसको दिया जाए और इस बात को लेकर पांडवों के बीच में आपसी मतभेद बढ़ता ही जा रहा था
तब उसके बाद भगवान श्री कृष्ण के साथ सभी पांडवों ने मिलकर बर्बरीक के पास पहुंच गए और बर्बरीक से पांडव ने पूछा की युद्ध जीतने का श्रेय किसका है तब बर्बरीक ने कहा कि महाभारत युद्ध जीतने का पूरा श्रेय भगवान श्री कृष्ण का है और महाभारत युद्ध को भगवान श्री कृष्ण ने अकेले ही लड़ा है।

और इतना सुनने के बाद भगवान श्री कृष्ण ने बर्बरीक को कलयुग में अपने नाम से पूजे जाने का वरदान दे दिया और भगवान श्री कृष्ण ने अभी कहा कि अगर कोई भी हारा हुआ व्यक्ति तुम्हारे दरबार में जाएगा तो उसकी हमेशा जीत होगी।
और इसीलिए बाबा खाटू श्याम के भक्तों के द्वारा आप आप यह सुन सकते हैं कि “हारे का सहारा बाबा श्याम हमारा” इसी लिए कहा जाता है।
खाटू श्याम में अर्जी कैसे लगाएं

खाटू श्याम में अर्जी लगाने के लिए किसी विशेष प्रक्रिया को फॉलो नहीं करना होता है। आपके अंतर मन में जो भी मन्नत है। उसे खाटू श्याम तक पहुंचा देना है
अर्जी लगाने की यह प्रक्रिया है। पेन के लाल स्याही से बिल्कुल नए कोरे कागज पर अपने अंतर मन से निकली हुई प्रार्थना को लिखे। फिर उसे नारियल में लपेटकर रक्षा सूत्र से बांध दें। और बाबा खाटू श्याम मंदिर तक पहुंचा दे।
अगर आपकी प्रार्थना बिल्कुल सच्ची है। तो खाटू श्याम उसे जरूर स्वीकार करेंगे।
और अगर आप चाहे तो अपने घर से भी इसी प्रक्रिया को फॉलो करते हुए स्पीड पोस्ट से या कोरियर से बाबा श्याम के मंदिर तक अपनी अर्जी को पहुंचा सकते हैं।
खाटू श्याम के चमत्कार
बाबा खाटू श्याम के बहुत से मंदिर बने हुए हैं लेकिन खाटू गांव में बना मंदिर बाबा खाटू श्याम का मुख्य मंदिर माना जाता है और जब मंदिर नहीं बना हुआ था तब मंदिर के आसपास की जगह पर बड़े-बड़े घास कब मैदान हुआ करता था और उस समय कुछ चरवाहे नियमित अपनी क्या चराने के लिए वहां लेकर जाया करते थे
और एक दिन एक चरवाहे ने देखा की खाटू श्याम का शीश जिस जगह धरती में गड़ा हुआ था और उस जगह के ऊपर से जैसे ही गाय पहुंचती थी वैसे ही गायों के थन से अचानक दूध निकलने लगता था और ऐसा चमत्कार देखने के बाद वहां भीड़ इकट्ठा होने लगी
और तब सब लोगों ने मिलकर उसे स्थान पर गड्ढा करना शुरू किया और देखते ही देखते कुछ गहराई तक खुदाई करने के बाद बाबा खाटू श्याम का शीश मिला जिसको सर्वसम्मत से पुजारी को दे दिया गया पूजा करने के लिए।
खाटू श्याम का इतिहास
खाटू श्याम का इतिहास महाभारत काल से ही है और भगवान श्री कृष्ण ने बर्बरीक को कलयुग में अपने नाम से पूजा जाने का वरदान दिया था अगर भगवान श्री कृष्ण ने बर्बरीक से उनका शीश नहीं मांगते तो महाभारत युद्ध का परिणाम कुछ भी हो सकता था
और भगवान श्री कृष्ण ने बर्बरीक के शीश को खाटू गांव में ही दफनाया था जिसको कलयुग की शुरुआत होने पर चरवाहों के द्वारा खोजा गया और तब से बाबा श्याम का पूजा होना शुरू हो गया
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